This Para is Written by Mr. Suraj Shukla
Here his picture to know him better
The Para is here,
आया था सुकून का निमित मात्र बनने,
बन गया दुखों का अंबार ,
जुगल बंदियों किनलहरों मे बहता रहा मै,
मै तो ये नहीं था ,
चाह थी हमे उनकी एक द्रीसटी की,
उन्हे हमारी तरफ देखा न गया ,
आया था सुकून का निमित मात्र बनने,
आपनों को अपना समझना भूल थी हमारी ,
क्युकी परायों मे भी हमने अपने को पाया था,
तरह तरह की नज़रों से देखा गया मैं ,
नज़रों मे आने के लिए नज़रों से गीर गया मै ,
भूल थी हमारी हमने , आपने आप को अपना न समझ,
मगर आपनों ने हमे क्या खूब समझ
आया था सुकून का निमित मात्र बनने,
उलझनों से भर रहा सफर मेरा
जाने हुए रास्तों मे अनजाने से मुलाकात हुई
रहो मे चलता रहा सहारे की खवाइस लिए ,
सहारे की अंबार लिए लंगड़ा भी आगे बढ़ता रहा
मेरी रूह ने आपने आपको जलते हुए देखा है
अपनेआप को खोने से बचाया है हमने
आया था सुकून का निमित मात्र बनने,
ज्ञान की आधार सिला को मजबूत करने आया था
ज्ञान की तराजू मै तौला गया मै
समझने वालों ने हमे क्या खूब समझा
भावनाओ की जंजीरों मे जकड़कर पूछते है,
क्या तुम्हें अब भी सक है?
क्यू ना समझे आपनेआप को बेसहारा हम
अंधेरी रात मे आसू को देखना क्या कम है?
आया था सुकून का निमित मात्र बनने,
फलक को छूने की जहन मे चेतना जागती हैं,
और जमी पे सहारे के लिए भटकता हु,
हसन सिख हमने उन्हे हसाने के लिए
हम रोते रहे और वो हस्ते रहे ।
कब फासले बढ़े पता न चला
चाँदनी रात की मित्रता हमे रास आने लगी
सच्चाई से रूबरू होना हमे खटकता था,
पर सच तो सच है अपनान पड़ा
आया था सुकून का निमित मात्र बनने,
जख्मों पे मरहम लगाना सिख लेंगे हम
बेगानी महफील को अपना बनाना सिख लेंगे हम',
सोचे वो जिन्होंने मुझे सोचने पर मजबूर किया
हमने तो सोच लिया क्या वो सोच पाएंगे
आया था सुकून का निमित मात्र बनने,
~~सूरज शुक्ला
( Teacher )
I am dam sure how you will feel after reading this
My expression while listening
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